man ki baat
Saturday 2 November 2013
Sunday 21 October 2012
आचरण का सौन्दर्य
जैसे फूल की खुशबू उसकी पहचान चुपचाप हमारे कानों में कह जाती है , जैसे मंद-मंद समीर अपनी शीतलता का अहसास करा जाता है ,कल-कल बहती नदी अपने भीतर छिपे संगीत का ,घने वृक्ष अपने भीतर छिपे आश्रय का ,पर्वतों की श्रृंखलाएं अपने सौन्दर्य का ,आकाश से उतरी चांदनी चंद्रमा की शीतलता का परिचय अपने आप करा जाती है उसी प्रकार हमारा आचरण भी वह दर्पण बन जाता है ,जिसमें हम साफ़ -साफ़ दिखाई देते हैं .
लेकिन इस आचरण की हमें कितनी परवाह है ?अपने रूप को निखारते ----उसे सँवारने के नित नए तरीके ढूंढते ----बाहर से बहुत साफ़ सुथरे ,उजले -उजले बनते हम--आचरण के सौन्दर्य की चेतना से मुक्त हैं .आचरण की पवित्रता से हमारा रिश्ता सिर्फ किसी पवित्र स्थान में प्रवेश करने के पूर्व अपने जूते उतारने ,अपने उपर पवित्र जल छिड़क लेने या किसी भी आडम्बरपूर्ण तरीके तक ही है ,
हम आचरण के सौन्दर्य को कोने में रखकर ,मुखौटे लगाने में माहिर होते चले गए हैं .हमारी समझ में यह आ गया है कि हमारे सारे गलत काम ,दान की सफेद चादर में छिपाए जा सकते हैं .हमें यह भी लगने लगा है कि संतों के साथ फोटो खिंचवा कर ,अपनी दुष्टता को छिपा सकते हैं .साम्प्रदायिक दंगे फ़ैलाने के बावजूद ,शान्ति के कबूतर उड़ा-उड़ा कर तालियाँ बजवा सकते हैं .रिश्वत के कालीन पर चलते हुए शान से मुस्करा सकते हैं .
हमारे भीतर जो ढेर सारे स्वांग हैं .जो आड़ी-तिरछी कामनाएं वे सबकी सब बाहरी चमक के साथ मिल जाने को आतुर होती चली गयी है .बहुत कुछ पा लेने की अभीप्सा ने हमें उन्माद का वह अट्टहास दिया है जहाँ जीवन का अमृत संगीत ,सदाचरण की मधुर वीणा खो गई है .
हमें रुक कर सोचना होगा कि हम कौन -सा जीवन जी रहे हैं ? इस जीवन में किसी आत्मिक सौन्दर्य को जगह है या नहीं ? मन की गहराइयों में डूबकर इस सौन्दर्य के मोती को ढूंढ लाने की फुरसत हमें होनी चाहिए .जीवन -यात्रा में ठहरकर, सोचने की जरूरत महसूस करेंगे तो आचरण का सौन्दर्य अपने आप हमें पुकार लेगा
आचरण का सौन्दर्य जिनके पास होता है ,वे अपने आप जीवन -यात्रा में सौन्दर्यमयी ,पवित्र ,
सुगन्धित घाटियों में आनंद के तीर्थों का साक्षात्कार करते चलते हैं . कंटीली झाड़ियाँ हटती चली जाती हैं सदियों से गूंजती सदाचार.त्याग और तपस्या की ध्वनियाँ ,इस पवित्र पथ पर अपने आप साथ हो जाती हैं .
सारे मुखौटे ,सारे पाखंड ,सारी दुष्टता खंड -खंड हो बिखर जाती है . 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' के आलोकित पथ पर हम चलते चले जाते हैं .
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लेकिन इस आचरण की हमें कितनी परवाह है ?अपने रूप को निखारते ----उसे सँवारने के नित नए तरीके ढूंढते ----बाहर से बहुत साफ़ सुथरे ,उजले -उजले बनते हम--आचरण के सौन्दर्य की चेतना से मुक्त हैं .आचरण की पवित्रता से हमारा रिश्ता सिर्फ किसी पवित्र स्थान में प्रवेश करने के पूर्व अपने जूते उतारने ,अपने उपर पवित्र जल छिड़क लेने या किसी भी आडम्बरपूर्ण तरीके तक ही है ,
हम आचरण के सौन्दर्य को कोने में रखकर ,मुखौटे लगाने में माहिर होते चले गए हैं .हमारी समझ में यह आ गया है कि हमारे सारे गलत काम ,दान की सफेद चादर में छिपाए जा सकते हैं .हमें यह भी लगने लगा है कि संतों के साथ फोटो खिंचवा कर ,अपनी दुष्टता को छिपा सकते हैं .साम्प्रदायिक दंगे फ़ैलाने के बावजूद ,शान्ति के कबूतर उड़ा-उड़ा कर तालियाँ बजवा सकते हैं .रिश्वत के कालीन पर चलते हुए शान से मुस्करा सकते हैं .
हमारे भीतर जो ढेर सारे स्वांग हैं .जो आड़ी-तिरछी कामनाएं वे सबकी सब बाहरी चमक के साथ मिल जाने को आतुर होती चली गयी है .बहुत कुछ पा लेने की अभीप्सा ने हमें उन्माद का वह अट्टहास दिया है जहाँ जीवन का अमृत संगीत ,सदाचरण की मधुर वीणा खो गई है .
हमें रुक कर सोचना होगा कि हम कौन -सा जीवन जी रहे हैं ? इस जीवन में किसी आत्मिक सौन्दर्य को जगह है या नहीं ? मन की गहराइयों में डूबकर इस सौन्दर्य के मोती को ढूंढ लाने की फुरसत हमें होनी चाहिए .जीवन -यात्रा में ठहरकर, सोचने की जरूरत महसूस करेंगे तो आचरण का सौन्दर्य अपने आप हमें पुकार लेगा
आचरण का सौन्दर्य जिनके पास होता है ,वे अपने आप जीवन -यात्रा में सौन्दर्यमयी ,पवित्र ,
सुगन्धित घाटियों में आनंद के तीर्थों का साक्षात्कार करते चलते हैं . कंटीली झाड़ियाँ हटती चली जाती हैं सदियों से गूंजती सदाचार.त्याग और तपस्या की ध्वनियाँ ,इस पवित्र पथ पर अपने आप साथ हो जाती हैं .
सारे मुखौटे ,सारे पाखंड ,सारी दुष्टता खंड -खंड हो बिखर जाती है . 'सत्यम शिवम् सुन्दरम' के आलोकित पथ पर हम चलते चले जाते हैं .
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Wednesday 4 January 2012
chinta hai
मंच ,गोष्ठी ,बहस ,सड़क और संसद तक देश की चिंता है, समाधान घास में सुई जैसा है .सबकी नजर सामने वाले पर ,गिरहबान हाथ में और का ,चिंता के मूल में कोई और ,सिर्फ प्रश्नों का शोर ,उत्तरों का और न ठोर ,बचा रहें हैं खुद को खुद से ,मासूम बने रहने की जिद से .
Monday 2 January 2012
naye varsh me
अगर बेसुध न हुए ,नए वर्ष की सुबह का स्वागत करेंगे जरूर ,दोस्ती न की अंधेरों से ,उजालों से हाथ मिलायेंगे जरूर ,काट न दिए हों अरमानों के पंख .आकाश में उड़ान भरेंगे जरूर .संवेदनाएं रेगिस्तान में न बदली हों ,दर्द से रिश्ता निभाएंगे जरूर ,नागफनी को सींच लिया हो जी भर ,बरगद को सीने से लगायेंगे जरूर ,सबक सीखें हों गलतियों से ,आगत खुशनुमा बनायेंगे जरूर .
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